क्या श्रीराम आमिष-भोजी थे?

क्या राम आमिष-भोजी थे?
- कार्तिक अय्यर
।।ओ३म्।।
सनातन धर्म पर आक्षेप करने वाले लोग भगवान् रामचंद्र आदि महापुरुषों पर आमिष भोजन का आक्षेप करते हैं। 
वाल्मीकीय रामायण में एक प्रकरण मे, उनको रामचंद्र जी के मांसाहार करने का हेतु मिलता है। वह प्रकरण कुछ इस प्रकार है-

भगवान राम माँ से यही बात कहते हैं –
चतुर्दश हि वर्षाणि वत्स्यामि विजने वने ।
कन्द मूल फलैर्जीवन् हित्वा मुनिवदामिषम् !!  –वा, रा २/२०/२९,
" अर्थात् मैं चौदह वर्षों तक वन में रहूंगा, ऋषि मुनियों की तरह फलादि का सेवन करूंगा। तथा आमिष का त्याग करूंगा।"
इस पर लोग आक्षेप करते हैं कि भगवान् राम वनवास के पहले तो मांस खाते थे! ये उन लोगों की भयंकर भूल है! "आमिष" शब्द का अर्थ यहां पर "मांस,गोश्त" करते हैं। परंतु "आमिष" शब्द के बहुत से प्रयोग संस्कृत में मिलते हैं। हम वामन आप्टे और मोनियर विलियम्स के कोशों के कुछ प्रमाण रखते हैं:-

(१):- आमिष यानी-"इच्छा,कामेच्छा"-
Desire, lust; निरामिषो विनिर्मुक्तः प्रशान्तः सुसुखी भव Mb.12.17.2; निरपेक्षो निरामिषः Ms.6.49.
यहां पर महाभारत १२/१७/२ और मत्स्यपुराण ६/४९ के हवाले से "आमिष" का अर्थ "कामभोग,इच्छा" ऐसा ग्रहण हुआ है। तो क्या ये अर्थ नहीं हो सकता कि राम जी के अनुसार-"वे ऋषि मुनियों की तरह आमिष का, यानी किकामभोगों का त्याग करके १४ वर्षों तक रहेंगे?

(२):- आमिष यानी-"आकर्षक वस्तु, आनंददायक वस्तु"
Enjoyment; pleasing or lovely or attractive object; नामिषेषु प्रसंगो$स्ति Mb.
Mb.12.158.23. यहां  महाभारत १२/१५८/२३ के संदर्भ से आमिष का अर्थ आकर्षक वस्तु आजि है। तो क्या हम ये नहीं कह सकते कि रामचंद्रजी कहना चाहते हैं कि -"हे मां! मैं १४ साल तक हर तरह के आकर्षण(आमिष) का त्याग करूंगा व तपस्वी जीवन बिताऊंगा"?

(३):- आमिष का अर्थ एक फल विशेष और जीविका:-
.The fruit of the Jambīra;
यहां पर आमिष का अर्थ "जंबिरा" नामक कोई फल है। तो फिर केवल मांस,गोश्त ही अर्थ किसलिये कि़ा जाये?
अब हम रामायण के उत्तरकांड से ही एक शब्दप्रयोग दिखाते हैं:-
means of livelihood
-
आमिषं यच्च पूर्वेषां राजसं च मलं भृशम् ।
अनृतं नाम तद्भूतं क्षिप्तेन पृथिवीतले ॥
७/७४/१७ ( रामायण उत्तरकांड , सर्ग ७४ श्लोक १७ गीताप्रेस संस्करण)
यहां वैश्यों की जीविका वृत्ति , जो 'अनृत' है,रजोगुण धर्म मिश्रित है को -"आमिष" कहा गया है । तब हम आमिष का अर्थ मांस ही क्यों करें?

(४):- मेदिनी कोष में-  आमिष शब्द के कई अर्थ हैं जिसमे एक अर्थ है– राजभोग ! देखिये— मेदिनी कोष – आकर्षणेपि पुन्सि स्यादामिषं पुन्नपुन्सकम् ! भोग्य वस्तुनि संभोगेप्युत्कोचे पललेपि च !! —यहां भोग्यवस्तु भी आमिष शब्द का अर्थ बतलायी गयी है। अतः यह सिद्ध है कि राम जी कहना चाहचे हैं कि वे १४ वर्षों तक आमिष यानी राजसी भोग्यवस्तुओं से दूर रहेंगे।
भगवान रामचंद्र जैसे महापुरुष आर्य संस्कृति के आधार-स्तंभ वेद के सच्चे अनुयायी थे। वे कभी मांस भक्षण नहीं करसकते थे।
हम एक ठोस प्रमाण रामायण से ही देकर अपनी प्रतिज्ञा को सिद्ध करते हैं:-
हनुमानजी जब जानकी जी से लंका में मिले तो उन्होंने श्रीराम के विषय में माँ से बतलाया कि प्रभु राम आपके वियोग में मांसभक्षण नहीं करते और न ही मद्यपान और न अपने शरीर से मच्छर या कीड़े आदि को ही हटाते हैं क्योंकि उनका मन आपमें ही लगा रहता है नित्य ही शोक में डूबे रहते हैं ! देखें श्लोक — न मांसं राघवो भुंक्ते न चैव मधु सेवते !
नैव दन्सान् न मशकान् न कीटान् न सरीसृपान्! राघवोपनयेद् गात्राद् त्वद्गतेनान्तरात्मना | —सुन्दरकांड –३६/४१-४२-४३, –
यहां पर ये भाव नहीं है कि सीताजी से वियोग होने के पहले मांसभक्षण व सुरापान करते थे। यहां सीताजी का पूछने का भाव है कि कहीं मेरे पतिदेव मेरे वियोग में नशा आदि या वेदविरुद्ध कर्म तो नहीं करने लगे।
गीताप्रेस की टीका, जो नागेश भट्ट आदि प्राचीन टीकाओं के आधार पर रची हई है, में इसका अनुवाद इस प्रकार से है-
"कोई भी रघुवंशी न तो मांस खाता है और न मधु का सेवन करता है; फिर भगवान् श्रीराम इन वस्तुओं का सेवन क्यों करते?"
( गीताप्रेस वाल्मीकीय रामायण टीका,भाग-२ सुंदरकांड सर्ग ३६, श्लोक ४१ , पृष्ठ १३७)
अब पूर्ण रूप से सिद्ध हो गया कि भगवान श्रीराम तो क्या, सभी प्राचीन आर्यराजा मांसाहार भोजी व मद्यपान करने वाले नहीं थे।
निष्कर्ष- यह बलपूर्वक हमने सिद्ध कर दिया है कि 'आमिष' का अर्थ हर जगह मांस नहीं होता। इसलिये प्रकरण के अनुसार हमें शब्दार्थ करना चाहिए। हमवे ये भी साबित कर दिया कि रामचंद्रजी पूर्ण रूप से मांसभक्षण, सुरापान आदि नहीं करते थे। हमारे सनातनी बंधु सत्य शास्त्रों को पढें, व झूठ के बहकावे में न आयें।
धन्यवाद ।
।।मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम चंद्र की जय।।
संदर्भ ग्रंथ एवं पुस्तकें:-
१:- वाल्मीकीय रामायण- गीताप्रेस टीका
२:- आप्टे-मोनियर शब्दकोश- विकिस्रोतः से साभार

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