आदिवासी लिपियों का इतिहास

आदिवासी लिपियों का इतिहास
- नटराज नचिकेता


        अनेको अम्बेडकर वादी सोसल साईट पर नकली आदिवासी बन आदिवासी सभ्यता को दूषित तो कर ही रहे है साथ में इनका हिन्दू धर्म और हिन्दू देवी देवताओं से द्वेष को भी जन्म दे रहे है | इसी कड़ी में इनकी एक साजिश है सिन्धु लिपि को झारखंड के मुंडा ,गोंडा आदि आदिवासी की लिपि से तुलना कर आदिवासी लिपि बताते है | लेकिन ये लोग इन संथाली आदि बोलियों की लिपि का इतिहास इसलिए नही बताते है कि यदि ये ऐसा करेंगे तो जिस छल के द्वारा ये लोग आदिवासी लिपियों से तुलना कर सिन्धु लिपि को आदिवासी लिपि बता रहे है वो टूट जाएगा | 
        
       वास्तव में आदिवासी कोई भाषा नही बोलते बल्कि ये लोग क्षेत्रीय बोली जिसे देलेट कहते है बोलते है और बोलियों का कोई साहित्य ,व्याकरण और लिपि नही होती है ये लोक कथाओं और श्रुति रूप में सुरक्षित रहती है | अधिकतर इन्हें व्यक्त करने के लिए जो लिपि प्रयोग की जाती है वो क्षेत्र विशेष की भाषा की लिपि द्वारा किया जाता है | जैसे हाडोती भाषा , मेवाड़ी आदि को देवनागरिक द्वारा ही | तो कुछ जगह इनकी कल्पित लिपि बना कर व्यक्त किया जाता है जैसे गुरुमुख लिपि में पंजाबी और शारदा आदि लिपि में अवधि आदि | 

         इसी तरह जिन आदिवासी लिपि के आधार पर सिन्धु सभ्यता की लिपि पढने का दावा किया जाता है वो लिपि असल में १८ से १९ वी सदी में बनाई और कल्पित की गयी है | संथाली बोली के लिए लिपि का निर्माण १९३४ में ओलचिकी नामक लिपि बनाई गयी जिसे रघुनाथ मुर्मू ने बनाया था |

       इसी तरह " हो बोली " के लिए हो भाषा भाषी कोल लको बोरा ने वराड चित्ति लिपि कल्पित की कुडुक बोली के लिए १९३७ में सामुएल रंका ने कुडुख लिपि नाम से एक वर्णमाला तैयार की किन्तु ये परिस्थति के अनुकूल नही हो पाई और तब श्रीमति अनन्ति जेबा सिंह ने बराती और भारती लिपि को प्रस्तुत किया | इस तरह आदिवासी लिपिया १८-१९ सदी में ही बनाई गयी है | अब इन्ही नवीन कल्पित लिपियों के आधार पर सिन्धु लिपि को पढना क्या इन अम्बेडकरवादी भाषाविदो की मुर्खता ही है | साथ में ये ऐसा है कि केवल मात्र मराठी या गुजराती के आप संस्कृत का अध्ययन कर रहे हो | अत: सिन्धु लिपि को आदिवासी लिपि बताना अम्बेडकरवादियों ,वामियो का षड्यंत्र है ताकि आदिवासी और अन्य नगरीय हिन्दुओ में आपस में मनमुटाव और द्वेष पनपे और ये लोग अपना वोट बेंक और अपनी कुंठा ईर्ष्या निकालते रहे |