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नास्तिक
व्यक्ति के विचार
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यह दिखाई देने वाला संसार न तो किसी
ने बनाया है, और न ही यह अपने आप बना है ; न तो इसको कोई नष्ट करेगा और न ही कभी यह
अपने आप नष्ट होगा | यह अनादि काल से ऐसे ही बना-बनाया चला आ रहा है और अनंत काल तक
ऐसे ही चलता रहेगा | इस संसार के बनाने वाले किसी कर्ता को, किसी ने कभी नहीं देखा
| यदि देखा होता तो मान भी लेते की हाँ, इसका कर्ता ईश्वर है | इसलिए कर्ता न दिखाई
देने से यही बात ठीक लगाती है की यह संसार बिना कर्ता के अनादि काल से ऐसे ही बना-बनाया
चला आ रहा है और आगे भी अनंतकाल तक चलता रहेगा |
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आस्तिक व्यक्ति के विचार
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प्रत्येक वस्तु के कर्ता का निर्णय
केवल प्रत्यक्ष देखकर ही नहीं होता, बल्कि अनुमान आदि प्रमाणों से भी कर्ता का निर्णय
होता है । बाजार से हम प्रतिदिन ऐसी अनेक वस्तुएँ लाते हैं, जिनको कारखानो, फैक्ट्रीयो
, आदि में बनाया जाता हैं | इन वस्तुओ को बनाते हुए , कारीगरों को हम नहीं देख पाते
हैं , तो क्या हम उन सबको बनी-बनाई मान लेते हैं ? जैसी की पेन , घडी, रेडिओ, टेप रिकॉर्डर
, टेलीविजन , कार आदि | कोई भी बुद्धिमान इन वस्तुओ को बनी-बनाई नहीं मानता हैं | ऐसी
अवस्था में पृथ्वी आदि विशाल ग्रह-उपग्रहो को बनाते हुए यदि हमने नहीं देखा तो यह कैसे
मान लिया जाय की ' ये बने बनाए ही है' | जैसे पेन , घडी , रेडिओ , कार आदि को बनाने
वाले करगीर, कारखानो में इनको बनाते है , वैसे ही पृथ्वी आदि पदार्थो को भी कोई न कोई
अवश्य ही बनता है | जो बनाता है , वही ईश्वर है |
किसी भी व्यक्ति ने अपने शरीर
को बनते हुए नहीं देखा तो क्या यह मान लिया जाए ' हम सब का शरीर सदा से बना-बनाया है
यह कभी नहीं बना !' ऐसा तो मानते हुए नहीं बनता | क्योंकि हम प्रतिदिन ही दुसरो के
शरीरों को जन्म लेता हुवा देखते है, और ऐसा अनुमान करते है की जन्म ९-१० मास पहले यह
शरीर नहीं था | इस काल में इस शरीर का निर्माण हुआ है | जबकि हमने शरीर को बनते हुए
नहीं देखा, फिर भी इसको बना हुआ मानते है| ठीक इसी प्रकार से पृथ्वी आदि पदार्थो को
भी यदि बनते हुए न देख पाये , तो इतने मात्र से यह सिद्ध नहीं हो जाता की पृथ्वी आदि
संसार के पदार्थ सदा से बने-बनाये है | जैसी हमने अपने शरीरो को बनते हुए नहीं देखा
, फिर भी इन्हें बना हुआ मानते है , ऐसे ही पृथ्वी आदि पदार्थ भी हमने बनते हुए नहीं
देखे , परन्तु ये भी बने है , ऐसा ही मानना चाहिए |
' पृथ्वी बनी है ' इसे हम
इस प्रकार भी समझ सकते है | ' जो भी वस्तु टूट जाती है , वह वस्तु कभी न कभी अवश्य
ही बनी थी , ' यह सिद्धांत है | जैसे गिलास के किनारे पर एक हलकी चोट मारने से गिलास
का एक किनारा टूट जाता है और यदि गिलास पर बहुत जोर से चोट मारी जाये , तो पूरा गिलास
चूर-चूर हो जाता है | वैसे ही पृथ्वी के एक भाग पर फ्हावड़े-कुदाल से चोट मरने पर इसके
टुकड़े अलग हो जाते है, तीव्र विस्फोटकों = (Dyanamite) आदि साधनो के द्वारा जोर से
चोट करने पर बड़े-बड़े पहाड़ आदि भी टूट जाते है | इसी प्रकार अणु-परमाणु बमों आदि से
बहोत जोर से चोट मरी जाये, तो पूरी पृथ्वी भी टूट सकती है | इससे सिद्ध हुआ की गिलास
जैसे टूटा था --- तब जबकि वह बना था ; इसी प्रकार से पृथ्वी भी यदि टूट जाती है , तो
वह भी अवश्य ही बनी थी | और इसको बनाने वाला ईश्वर ही है | इसी बात को हम पांच-अवयवों
के माध्यम से निम्न प्रकार से समझ सकते है |
१
प्रतिज्ञा --- पृथ्वी आदि बड़े-बड़े ग्रह उत्त्पन हुए है |
२
हेतु -- तोड़ने पर टूट जाने से , जो वस्तु टूटती है वह बनी अवश्य थी |
३
उद्धरण -- गिलास के समान |
४-
उपनय -- जैसे गिलास टूटता है, वह बना था ; वैसे ही पृथ्वी भी टूटती है, वह भी बनी थी
|
५
निगमन --- क्योंकि पृथ्वी आदि ग्रह तोड़ने से टूट जाते है , इसलिए वे बने है |
विज्ञानं का यह सिद्धांत
है की संसार सूक्ष्मतम भाग परमाणु ही केवल ऐसा तत्त्व है, जिसको न तो उत्त्पना किया
जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है औए न ही नष्ट किया जा सक्ता है *-A
matter can-neither be produced and nor be destroyed .* इस सिद्धांत के आधार पर परमाणु
से स्थूल संसार से मिलकर बने है | और क्योंकि वे मिलकर बने है , इसलिए नष्ट भी हो जाते
है | इससे सिद्ध होता है की पृथ्वी भी छोटे छोटे परमाणुओ से मिलकर बनी है , यह सदा
से बनी-बनायीं नहीं है | और जब पृथ्वी बनी है , तो इसका बनाने वाला भी कोई न कोई अवश्य
है | " कोई वस्तु अपने आप नहीं बनती " यह बात हम पिछले प्रकरण में = ( नास्तिक
मत खंडन भाग २) में सिद्ध कर चुके है | इसलिए पृथ्वी आदि संसार के सभी पदार्थो को बनाने
वाला ईश्वर ही है , भले ही हमने ईश्वर को पृथ्वी
आदि पदार्थ बनाते हुए न भी देखा हो |
पृथ्वी की उम्र के सम्बन्ध
में भी विज्ञानं का मत देखिये -- विज्ञानं के मतानुसार पृथ्वी की उम्र लगभग ४ अरब ६०
करोड़ वर्ष बताई गयी है | यह परिमाण पुरानी चट्टानों में विद्यमान यूरेनियम आदि पदार्थो
के परीक्षण के पश्चात निकला गया है |
According to their
deductions based on the study of rocks, the age of the Earth is estimated to be
around 4600 million years. - MANORAMA. A Handy Encyclopaedia (year book 1983).
page-105 , Science and Technology Section .
अनेक प्रकार के छोटे-छोटे उल्का पिण्ड
आकाश में टूटते रहते है | इन उल्का पिंडो के खंड , जो पृथ्वी पर आकर गिरे है , भारतीय
व विदेशी संग्रहालय में देखे जा सकते है | ये उल्का पिण्ड पृथ्वी के समान ही और मंडल
के सदस्य है , और सूर्य के चारो और चक्कर लगाते रहते है | जब ये उल्का पिण्ड सौर मंडल
के सदस्य होते हुए टूट जाते है, तो पृथ्वी भी सौर म ंडल का सदस्य होते हुए क्यों न
टूटेगी ? इससे भी यह सिद्ध होता है की यह संसार सदा से बना बनाया नहीं है , बल्कि टूटता
है और बनता है | इस समस्त संसार का बनाने और बिगड़ने वाला सर्वशक्तिमान =
(omnipotent), सर्वव्यापक = (Ominipresent), सर्वज्ञ = (Omniscient) ईश्वर ही है |
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नास्तिक मत खंडन भाग २
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