शूर्पणखा की 'सुंदरता' और श्रीराम की सत्यवादिता
- कार्तिक अय्यर
।।ओ३म्।।
कई लोग श्रीराम पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने न केवल शूर्पणखा जैसी 'सुंदर और सुशील' स्त्री को त्याग दिया, अपितु ये झूठ भी बोला कि मेरा छोटा भाई 'लक्ष्मण अविवाहित है, उससे विवाह कर लो।
आइये, वाल्मीकीय रामायण में देखते हैं कि इनमें कितनी सच्चाई है।
।।शूर्पणखा का सौंदर्यवर्णन।।
सुमुखं दुर्मुखी रामं वृत्तमध्यं महोदरी।
विशालाक्षं विरूपाक्षी सुकेळं ताम्रभूर्धजा।।
प्रतिरूपं विरूपा सा सुस्वरं भैरवस्वरा।
तरणं दारुणं वृद्धा दक्षिणं वामभाषिणी।।
न्यायवृत्तं सुदुर्वृत्ता प्रियमप्रियदर्शना।
शरीरजमाविष्टा राक्षसी वाक्यमब्रवीत्।।
( अरण्यकांड सर्ग १७)
"श्रीराम सुंदर मुख वाले थे पर वो राक्षसी दुर्मुखी थी। राम का पेट सुडोल था और वह बड़े पेड़ वाली थी ।राम के नेत्र विशाल थे और उसकी आंखें भद्दी थी। श्रीराम के केश काले चिकने और सुंदर थे तो उस राक्षसी के बाल ताम्र वर्ण के और भद्दे थे। राम देखने में सुंदर और प्रिय थे तो वह राक्षसी महा कुरूपा थी। राम का स्वर कोमल और मधुर था तो उस राक्षसी का स्वर महा कर्कश था ।राम युवा थे तो वह महा वृद्धा थी राम मधुर भाषी थे तो वह कटु भाषा नहीं थी श्रीराम सदाचारी थे तो वह अत्यधिक दुराचारिणी थी राम प्रियदर्शी थे तो वह अ प्रियदर्शनी थी।"
ये है शूर्पणखा माता का "मिस वर्ल्ड " जैसा रूप।
यहां हमारे मित्र अभिलाष आनंद चुटकी लेकर कहते हैं कि "वाल्मीकि ने भी वामभाषिणी कहकर शूर्पणखा को आधुनिक वामपंथी महिलावदी औरतों की ओर संकेत किया है।
शूर्पणखा इसी सर्ग में कहती है:-
अहं शूर्पणखा नाम राक्षसी कामरूपिणी।
अरण्यं विचरामीदमेका सर्वभयंकरः।।
"मेरा नाम शूर्पणखा है। मैं इच्छानुसार रूप धारण करने वाली राक्षसा हूं। सबको संत्रस्त करके इस वन में घूमा करती हूं।।
शूर्पणखा एक गैंगस्टर थी। सबको त्रस्त करते हुये घूमा करती थी।
सबसे बड़ी बात वो कुरूप,कर्कशा,भयंकर,भद्दी शक्ल वाली और बुढ़िया थी। वो राम जैसे व्यक्ति पर डोरे डाल रही थी जो उसके बेटे के समान थे। राम से प्रणय निवेदन करना केवल और केवल कामपिपासा थी। वरना कभी राम कभी 'लक्ष्मण के पल्ले न जाती। न ही सीता पर जानलेवा वार करने दौड़ती
।
इसलिये व्यर्थ में शूर्पणखा के सौंदर्य और चरित्र की वकालत करके राम को दोषी न कहें।
।।श्रीराम की सत्यवादिता ।।
हां, अब कुछ लोग बोलते हैं कि श्रीराम ने क्यों झूठ कहा कि लक्ष्मण अविवाहित है। तो ये श्लोक देखिये:-
श्रीमानकृतदारश्च 'लक्ष्मणो नाम वीर्यवान।।
( अयोध्याकांड| १८/३)
यहां अकृतदारः का अर्थ गोविंदराज टीकाकार " असहकृत दारः" करते हैं, यानी 'जिसके साथ वर्तमान में स्त्री न हो"। ये ठीक ही है, क्योंकि 'लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला १३ साल से अयोध्या में थी,उनको लंबे समय से पत्नी का साथ नहीं मिला था इसलिये उनको "असहकृतदारः" कहना गलत नहीं है। इसलिये श्रीराम को झूठ बोलने का आरोप लगाना अयुक्त है।
मूर्ख तो वो लोग हैं जो टीकाओं को देखे बिना ही राम को झूठ बोलने का आरोप लगाते हैं।
अतः बिना सोचे विचारे आक्षेप करने से परहेज करें, ऐसा न हो कि पोल खुलने पर मुंह छुपाने की भी जगह न मिले।
।।ओ३म्।।
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