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प्रश्न :- ईश्वर पूर्ण है वा अपूर्ण ?
उत्तर :- पूर्ण ।
उत्तर :- पूर्ण ।
प्रश्न :- ईश्वर कारण के विना कार्य करता है वा कारण होते बिना ही कार्य कर देता है ?
उत्तर :- ईश्वर कारण (प्रयोजन ) के बिना कोई भी कार्य नही करता ।
उत्तर :- ईश्वर कारण (प्रयोजन ) के बिना कोई भी कार्य नही करता ।
प्रश्न :- मानव योनी तथा
भोगयोनी मे क्या अंतर है ?
उत्तर :- मानव जनम कर्म तथा भोग दोनो है तथा भोग योनी केवल भोग हेतु है ।
उत्तर :- मानव जनम कर्म तथा भोग दोनो है तथा भोग योनी केवल भोग हेतु है ।
प्रश्न :- मानव जनम किस आधार
पर मिला ?
उत्तर :- मानव जनम कर्म आधारपर मिला है ।
उत्तर :- मानव जनम कर्म आधारपर मिला है ।
प्रश्न :- मानव जनम मिला वह
कर्म आधारपर तो वह कर्म कब और किस जनम मे किये थे ?
उत्तर :- पिछले मानव जनम किये थे ।
उत्तर :- पिछले मानव जनम किये थे ।
प्रश्न :- कौनसे कर्म करने पर क्या क्या फल प्राप्त होते है ?
उत्तर :- पाप कर्म से दुख तथा भोगयोनी या प्राप्त होती है तथा पुण्य कर्म से सुख तथा मानव योनी प्राप्त होती है तथा निष्काम कर्म से मोक्ष प्राप्त होते है ।
उत्तर :- पाप कर्म से दुख तथा भोगयोनी या प्राप्त होती है तथा पुण्य कर्म से सुख तथा मानव योनी प्राप्त होती है तथा निष्काम कर्म से मोक्ष प्राप्त होते है ।
प्रश्न :- मोक्ष के लिये
कौनसे निष्काम कर्म आवश्यक है ?
उत्तर :- मोक्ष के लिये 1) ईश्वर कि तत्वतः पहचान
2) जीवात्मा की तत्वतः पहचान
3) प्रकृति की पहचान
तथा पांच कर्म और समाधी लगाने से मोक्ष संभव है।
उत्तर :- मोक्ष के लिये 1) ईश्वर कि तत्वतः पहचान
2) जीवात्मा की तत्वतः पहचान
3) प्रकृति की पहचान
तथा पांच कर्म और समाधी लगाने से मोक्ष संभव है।
प्रश्न :- एक कर्म करे तॅ दो फल तथा अनंत कल तक फल
क्यों नही मिलता है ?
उत्तर :- जैसा कर्म वैसा फल । तथा 1 कर्म का एक ही फल । वैसा ही निष्काम का फल मोक्ष वह भी अनंत मोक्ष नही है ।
उत्तर :- जैसा कर्म वैसा फल । तथा 1 कर्म का एक ही फल । वैसा ही निष्काम का फल मोक्ष वह भी अनंत मोक्ष नही है ।
प्रश्न :- ईश्वर तो कारण के बिना कार्य करता नही , तो क्या कारण था जिससे वह पुर्ण होकर भी दुनिया बनाई ?
उत्तर :- हा ! कारण है , जैसै बाजा या बासुरी बाजा बजाने वाला है बाजा बजता भी है तथा बजता हुआ बाजा सुनने वाले भी है । तो तात्पर्य यह निकला की बाजा होकर बजाने वाला और सुनने वाला तीनो भी होकर यदी बाजा बजाने वाला बाजा बजाता ही नही तो बाजा होने का सुनने वालों का तथा बजाने वाले के अस्तित्व का पता नही लग सकता है । वैसै ही ईश्वर जीव प्रकृति तीनो होकर भी यदी ईश्वर जीव के कर्म फल ना दे तथा दुनिया ना बनाया तो ईश्वर है तथा उसके अनादी तथा पुर्ण होने का कोई महत्व नही होता । जीव के कर्म फल हेतु ईश्वर अनादी प्रकृती से अनादी जीव के लिय सृष्टि रचना करता है । इससे कर्म फल कि प्रक्रिया भी पुरी होती है और ईश्वर कि पुर्णता भी सिद्ध होती है ।
उत्तर :- हा ! कारण है , जैसै बाजा या बासुरी बाजा बजाने वाला है बाजा बजता भी है तथा बजता हुआ बाजा सुनने वाले भी है । तो तात्पर्य यह निकला की बाजा होकर बजाने वाला और सुनने वाला तीनो भी होकर यदी बाजा बजाने वाला बाजा बजाता ही नही तो बाजा होने का सुनने वालों का तथा बजाने वाले के अस्तित्व का पता नही लग सकता है । वैसै ही ईश्वर जीव प्रकृति तीनो होकर भी यदी ईश्वर जीव के कर्म फल ना दे तथा दुनिया ना बनाया तो ईश्वर है तथा उसके अनादी तथा पुर्ण होने का कोई महत्व नही होता । जीव के कर्म फल हेतु ईश्वर अनादी प्रकृती से अनादी जीव के लिय सृष्टि रचना करता है । इससे कर्म फल कि प्रक्रिया भी पुरी होती है और ईश्वर कि पुर्णता भी सिद्ध होती है ।
प्रश्न :- परंतु सब तो कहते
है ईश्वर प्रथम
अकेला ही था ?
उत्तर :- ईश्वर जब अकेला था पुर्ण था तो उसे दुनिया बनाने का कोई भी प्रयोजन सिद्ध होता है तथा ईश्वर कोई मानव नही जो अपने को बालबुद्धि सिद्ध करे बिना मतलब दुनिया रचना कर के ।
उत्तर :- ईश्वर जब अकेला था पुर्ण था तो उसे दुनिया बनाने का कोई भी प्रयोजन सिद्ध होता है तथा ईश्वर कोई मानव नही जो अपने को बालबुद्धि सिद्ध करे बिना मतलब दुनिया रचना कर के ।
प्रश्न :- परंतु जीव तो ईश्वर का अंश कहा गया है ?
उत्तर :- जब ईश्वर अपरिवर्तनशील तथा कारण के विना कार्य ही करता नही तथा ना वह खेड रुप बनेगा तो ईश्वर का अंश जीव कदापि सिद्ध नही हो सकता ना चेतन से जड बनता है नाही चेतन से कभी चेतन बनता हे । इसकारण ईश्वर से ना जीव बना नाही ईश्वर से जड प्रकृति बनी है । इसकारण ही तो तीनों अनादि सिद्ध होते है ।
उत्तर :- जब ईश्वर अपरिवर्तनशील तथा कारण के विना कार्य ही करता नही तथा ना वह खेड रुप बनेगा तो ईश्वर का अंश जीव कदापि सिद्ध नही हो सकता ना चेतन से जड बनता है नाही चेतन से कभी चेतन बनता हे । इसकारण ईश्वर से ना जीव बना नाही ईश्वर से जड प्रकृति बनी है । इसकारण ही तो तीनों अनादि सिद्ध होते है ।
प्रश्न :- क्या आत्मा
परमात्मा का ही अंश है ?
उत्तर :- कोई छोटा पदार्थ किसी बड़े पदार्थ का अंश या टुकड़ा तभी कहा जायेगा जब उस छोटे पदार्थ और उस बड़े पदार्थ के गुण आपस में १००% समान होंगे । जैसे एक गुड़ की डली से एक छोटा टुकड़ा तोड़ लिया जाये तो उस टुकड़े और बाकी के गुण एक से ही रहेंगे बदलेंगे नहीं, जैसे लोहे की किसी वस्तु से छोटा टुकड़ा टूट पड़े तो उस टुकड़े में वही चुम्बकीय गुण, वही ताप झेलने की क्षमता ( Melting point ) आदि रहेंगे जो कि लोहे की उस वस्तु में है । लेकिन जैसा कि देखा गया है आत्मा और परमात्मा के गुण सर्वथा भिन्न भिन्न हैं, आत्मा जहाँ पर अल्पज्ञ, सीमित, एकदेशीय, सुख-दुख से युक्त, अल्पशक्तिशाली आदि है वहीं दूसरी ओर परमात्मा सर्वज्ञ, असीमित, सर्वदेशीय, सुख-दुख से रहित, सर्वशक्तिशाली है । ऐसे में आत्मा को परमात्मा का अंश कहना अनुचित है । एक आपत्ति ये भी आती है कि यदि हम आत्माओं को परमात्मा के अंश ( टुकड़े ) कहेंगे तो हमे ये मानना पड़ेगा कि परमात्मा के भी टुकड़े हो सकते हैं , ये बात गीता में भी आती है कि आत्मा को विभाजित नहीं किया जा सकता । तो फिर परमात्मा को कैसे विभाजित किया जा सकता है ? इससे सिद्ध होता है कि आत्माओं का अस्तित्व परमात्मा से भिन्न है ।
आत्मा परमात्मा का अंश कदापी नहीं है ।
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इस चर्चा से आप तात्पर्य यह समझे कि वेद विज्ञान पुर्ण है तथा कोई शंका बचती नही . समाज मे लोगो को अनंत मोक्ष तथा ईश्वर जीव के बिच का अंतर प्रकृति अनादी है ऐसी अनेक बातों से दूर रखा जाता है । इसकारण केवल उनके मत पंथ का किताब ही महत्वपूर्ण रहता है उसके अलावा केवल लोगो को बाकी के ग्रंथ मानने को कहा जाता है ना पडने को कहा जाता है नाही उन किताबो की सत्य शिक्षा पढाई जाती है । यही अधर्म तथा नपुंसकता का कारण बन लोग पुरुषार्थ से दूर रहते है । धर्म कि व्याख्या तक उन्हें पता नही होती । तथा उस मत पंथा कार्य यही होता है की उनकी मान्या बाकी लोगों से मेलजुल रखती है तो हमारा पंथ ही सच्चा हुआ । जब आप सत्य होतो आपको सबसे मेल जुल दिखाने कि नोबत कैसै आती है । तथा वेद से तो सब सत्य तथा सच्ची बाते हर एक किताब से मेल खाती ही है और खाऐगी ही तो क्ये वेद प्रमाणिक नही हुआ
बेशक इतना पडकर ज्ञानी सुधरते है परंतु वह लोग इतना समझाने पर भी कहते है इसे तो ईश्वर कि पहचान ही नही है ।
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नागराज आर्य
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उत्तर :- कोई छोटा पदार्थ किसी बड़े पदार्थ का अंश या टुकड़ा तभी कहा जायेगा जब उस छोटे पदार्थ और उस बड़े पदार्थ के गुण आपस में १००% समान होंगे । जैसे एक गुड़ की डली से एक छोटा टुकड़ा तोड़ लिया जाये तो उस टुकड़े और बाकी के गुण एक से ही रहेंगे बदलेंगे नहीं, जैसे लोहे की किसी वस्तु से छोटा टुकड़ा टूट पड़े तो उस टुकड़े में वही चुम्बकीय गुण, वही ताप झेलने की क्षमता ( Melting point ) आदि रहेंगे जो कि लोहे की उस वस्तु में है । लेकिन जैसा कि देखा गया है आत्मा और परमात्मा के गुण सर्वथा भिन्न भिन्न हैं, आत्मा जहाँ पर अल्पज्ञ, सीमित, एकदेशीय, सुख-दुख से युक्त, अल्पशक्तिशाली आदि है वहीं दूसरी ओर परमात्मा सर्वज्ञ, असीमित, सर्वदेशीय, सुख-दुख से रहित, सर्वशक्तिशाली है । ऐसे में आत्मा को परमात्मा का अंश कहना अनुचित है । एक आपत्ति ये भी आती है कि यदि हम आत्माओं को परमात्मा के अंश ( टुकड़े ) कहेंगे तो हमे ये मानना पड़ेगा कि परमात्मा के भी टुकड़े हो सकते हैं , ये बात गीता में भी आती है कि आत्मा को विभाजित नहीं किया जा सकता । तो फिर परमात्मा को कैसे विभाजित किया जा सकता है ? इससे सिद्ध होता है कि आत्माओं का अस्तित्व परमात्मा से भिन्न है ।
आत्मा परमात्मा का अंश कदापी नहीं है ।
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इस चर्चा से आप तात्पर्य यह समझे कि वेद विज्ञान पुर्ण है तथा कोई शंका बचती नही . समाज मे लोगो को अनंत मोक्ष तथा ईश्वर जीव के बिच का अंतर प्रकृति अनादी है ऐसी अनेक बातों से दूर रखा जाता है । इसकारण केवल उनके मत पंथ का किताब ही महत्वपूर्ण रहता है उसके अलावा केवल लोगो को बाकी के ग्रंथ मानने को कहा जाता है ना पडने को कहा जाता है नाही उन किताबो की सत्य शिक्षा पढाई जाती है । यही अधर्म तथा नपुंसकता का कारण बन लोग पुरुषार्थ से दूर रहते है । धर्म कि व्याख्या तक उन्हें पता नही होती । तथा उस मत पंथा कार्य यही होता है की उनकी मान्या बाकी लोगों से मेलजुल रखती है तो हमारा पंथ ही सच्चा हुआ । जब आप सत्य होतो आपको सबसे मेल जुल दिखाने कि नोबत कैसै आती है । तथा वेद से तो सब सत्य तथा सच्ची बाते हर एक किताब से मेल खाती ही है और खाऐगी ही तो क्ये वेद प्रमाणिक नही हुआ
बेशक इतना पडकर ज्ञानी सुधरते है परंतु वह लोग इतना समझाने पर भी कहते है इसे तो ईश्वर कि पहचान ही नही है ।
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नागराज आर्य
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